Bharat ka itihaas- prachintam kal se lagbhag 300 ce tak - bhic- 131.
( परिचय )
प्रिय विद्यार्थियों इस वाले Article में हम आपको बताने वाले हैं Bharat ka itihaas- prachintam kal se lagbhag 300 ce tak इसमें आपको सभी important question- answer देखने को मिलेंगे इन question- answer को हमने बहुत सारे Previous year के Question- paper का Solution करके आपके सामने रखा है जो कि बार-बार Repeat होते हैं, आपके आने वाले Exam में इन प्रश्न की आने की संभावना हो सकती है इसलिए आपके Exam की तैयारी के लिए यह प्रश्न उत्तर अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे। आपको आने वाले समय में इन प्रश्न उत्तर से संबंधित Video भी देखने को मिलेगी हमारे youtube चैनल Eklavya ignou पर, आप चाहे तो उसे भी देख सकते हैं बेहतर तैयारी के लिए
1. प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के स्रोतों के रूप में सिक्कों व अभिलेखों के महत्व पर एक टिप्पणी लिखिए?
Write a note on the importance of coins and inscriptions as sources of the reconstruction of ancient India history?
प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के स्रोतों के रूप में सिक्कों और अभिलेखों का अध्ययन महत्वपूर्ण है इनके द्वारा उस काल की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति की जानकारी प्राप्त होती है व्यापार और वाणिज्य का पता लगाया जा सकता है और शासकों की नीतियों को भी समझा जा सकता है
सिक्के :- सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र कहा जाता है सिक्कों की प्राप्ति उत्खनन से या मुद्रा भंडार के रूप में पाए जाते हैं यह खेतों में या भवन निर्माण के समय नीव की खुदाई करते समय मिले
धातु मुद्रा:- प्राचीन भारतीय मुद्रा चांदी, सोना, सीसा आदि की जारी की जाती थी मिट्टी के सिक्के भी जारी किए जाते थे और बाद में कौड़ी का भी इस्तेमाल किया जाने लगा
सिक्कों पर प्रतीक चिन्ह :- सिक्कों पर जारी करने वाले की मुहर होती थी प्राचीन सिक्कों में प्रतीक होते थे , लेकिन बाद में देवी-देवताओं के चित्र अंकित किए जाने लगे
सिक्कों का इस्तेमाल:- सिक्कों का प्रयोग दान , भुगतान और विनियम के माध्यम के रूप में किया जाता था , सिक्कों का उपयोग व्यापार में भी होता था
सिक्कों ने लेन-देन और व्यापार को आसान बना दिया था
राजवंशो के सिक्के :-
आहत सिक्के :- इन सिक्कों पर केवल प्रतीक होते थे यह पूरे उपमहाद्वीप में पाए गये हैं
- मौर्योत्तरकालीन सिक्के सीसा, पोटीन, तांबा, कांस्य, चांदी और सोने के बने थे इससे व्यापार में वृद्धि के संकेत मिलते हैं
- इतिहास में अधिकतम सोने के सिक्के गुप्त काल में जारी किए गए
- उत्तर गुप्त काल में कम सिक्के मिले जो व्यापार और वाणिज्य के पतन का संकेत देते हैं
- सिक्कों पर देवताओं और धार्मिक प्रतीक दर्शाते हैं जो उस समय के शिल्प और धर्म पर प्रकाश डालते हैं
- उत्तर गुप्त काल में कौड़ी का इस्तेमाल सिक्कों के रूप में भारी मात्रा में होने लगा
अभिलेख :- अभिलेख इतिहास की जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत है
अभिलेख का अध्ययन पुरालेख शास्त्र कहलाता है
अभिलेखों को उत्कीर्ण किया गया है
- मोहरो पर
- पत्थर के खंभे पर
- चट्टानों पर
- तांबे के गोले पर
- मंदिर की दीवारों पर
- लकड़ी की पट्टी पर
- ईंटो पर
सबसे पहले पत्थर पर अभिलेख उत्कीर्ण किए गए
हहड़प्पा के अभिलेख :- हड़प्पा के अभिलेखों को अभी पढ़ा नहीं जा सका है इसके अभिलेख
चित्रात्मक लिपि में लिखे गए है
अशोक के अभिलेख :-
- अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए कुछ अभिलेख खरोष्ठी और आरामाइक और ग्रीक लिपियों में लिखे गए
- अशोक के अभिलेखों का अध्ययन सर्वप्रथम 1938 में जेम्स प्रिंसेप ने किया जो बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी में सिविल सेवक थे
- अशोक के अभिलेखों में अशोक को संपूर्ण मानवता के कल्याण से संबंधित एक उदार राजा की छवि और व्यक्तित्व की झलक की प्रशंसा की गयी है
प्रशंसा अभिलेख:- राजाओं ने प्रशंसा अभिलेख भी उत्कीर्ण करवाएं इसमें प्रमुख प्रथम शताब्दी कलिंग के राजा खारवेल का हाथी गुफा अभिलेख शिलालेख और गुप्त शासक समुद्रगुप्त का इलाहाबाद स्तंभ प्रशंसा के लिए उत्कीर्ण किया गया था
भूमि अनुदान:- भूमि व्यवस्था और प्रशासन को समझने में भूमि अनुदान के दस्तावेज महत्वपूर्ण है यह भिक्षुओं ,पुजारियों, मंदिरों, जागीरदारों को अनुदान स्वरूप प्राप्त भूमि राजस्व और गांवों के दस्तावेज हैं
शिलालेख के अन्य उपयोग भी हैं जैसे - मूर्तियों की तिथियां, विलुप्त धार्मिक संप्रदाय, मूर्तिकला, वास्तुकला की जानकारी देते हैं
2- उत्तर वैदिक अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या थी ?
What were the main features of the Vedic economy?
उत्तर वैदिक काल में आर्यों की स्थिति में धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगा था इस समय तक लोहे का प्रयोग भारी मात्रा में होने लगा , उपज बढ़ गई व्यापार में तेजी देखी गई ।
लोह तकनीक :- भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वप्रथम लोहे का प्रयोग उत्तर वैदिक ग्रंथ में मिलता है कृष्ण आयस् या श्याम आयस् का उल्लेख लोहे के लिए किया जाने लगा
बैलों द्वारा चलाए जाने वाले हल के रूप में गंगा और दोआब क्षेत्र को साफ करने के लिए लोहे का प्रयोग किया जाने लगा।
कृषि :- कृषि उत्तर वैदिक लोगों के जीवन की मुख्य साधन थी उत्तर वैदिक ग्रंथों में लिखा है कि 6, 8 12 और 24 बैलों से जुताई की जाती थी यह अतिशयोक्ति भी हो सकती है क्योंकि बलि प्रथा के कारण बैल नहीं मिल पाते थे। शतपथ ब्राह्मण में कृषि कार्य को चार प्रकार में बांटा है जुताई, बुवाई, कटाई और मड़ाई । उत्तर वैदिक काल की प्रमुख फसल चावल और गेहूं थी उत्तर वैदिक लोगों द्वारा मसूर दाल का भी उत्पादन किया जाता था ।
कला और शिल्प :- उत्तर वैदिक काल में कला और शिल्प का उदय हुआ
बुनाई, चमड़े का काम ,बर्तन और बढईगीरी के काम में काफी प्रगति हुई ।
साक्ष्यों के अनुसार यह माना जाता है कि उत्तर वैदिक काल में 4 प्रकार के मिट्टी के बर्तन बनाते थे
- काले और लाल बर्तन
- हल्के काले बर्तन
- चित्रित भूरे बर्तन
- लाल बर्तन
इन बर्तनों को अनुष्ठानों में उच्च तबके के लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता था उत्तर वैदिक ग्रंथों में जोहरी का भी उल्लेख है जो समाज के समृद्ध वर्गों की जरूरतों को पूरा करते थे ।
अनुष्ठानों में परिवर्तन :- वैदिक काल में समुदाय को लाभ पहुंचाने के लिए अनुष्ठान किया जाता था लेकिन उत्तर वैदिक काल में खुद के लिए किया जाने लगा। अनुष्ठान सालों तक चलने लगे जिससे अब धनी लोग ही इसे कर पाते थे। मुखिया ब्राह्मण को दान देता था। बलि देने से मुखिया का समुदाय में उच्च स्थान प्राप्त होता था
भूमि का बढ़ता महत्व :- जमीन की जुताई पारिवारिक श्रम तथा घरेलू नौकर और दासों की मदद से की जाती थी पहले भूमि का स्वामित्व पूरे समुदाय का होता था लेकिन बाद में इस पर एक परिवार का प्रभुत्व हो गया । वैश्य समाज में उत्पादक वर्ग था। क्षत्रिय इनसे राजस्व वसूलते थे। राजस्व का कुछ भाग ब्राह्मणों को दान में दिया जाता था वैश्य इस घरेलू अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार थे भूमि को बेचने या खरीदने की कोई प्रथा नहीं थी।
व्यापार :- उत्तर वैदिक काल में देशी और विदेशी दोनों स्तर पर व्यापार हो रहा था व्यापार करने वालों को पणि कहा जाता था। व्यापार वस्तु के नियम के द्वारा किया जाता था व्यापार जलमार्ग से भी होता था।
निष्कर्ष –
इस प्रकार हम देखते हैं कि उत्तर वैदिक युग में आर्यों के आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे थे को पशुचारू और घुमंतू जीवन समाप्त हो गया था अब समाज एक जगह स्थिर हो गए। किसान अपनी जीविका के लिए पर्याप्त अनाज का उत्पादन कर रहे थे। राज और पुरोहितों को भी राजस्व दान दे देते थे लेकिन फिर भी अर्थव्यवस्था ग्रामीण थी लेकिन उत्तर वैदिक अर्थव्यवस्था प्राक शहरीकरण अर्थव्यवस्था थी।
3- प्राचीन तमिलहम में राजनीतिक समाज के क्रमागत उन्नति पर एक निबंध लिखिए?
An Essay on the Evolution of Political Society in Ancient Tamilham write?
वेंकटम पहाड़ियों और कन्याकुमारी के बीच के भू क्षेत्र को तमिलहम यानी तमिल क्षेत्र कहते हैं इसमें आधुनिक तमिलनाडु और केरल आते हैं यहां तीन प्रमुख वंश चेर, चोल और पांड्य का शासन था यह तीनों ही इस क्षेत्र के राजनीतिक केंद्र थे।
राजनीतिक समाज का उद्भव :- कई कुल को मिलाकर मुखियातंत्र का उद्भव हुआ था
मुखिया को श्रेष्ठ (पेरू मकन) या मुखिया पुत्र कहा जाता था।
मुखिया तंत्रों का निर्माण आक्रमणों और दूसरे क्षेत्रों पर कब्जा जमा कर किया जाता था।
वैवाहिक संबंध के आधार पर ही मुख्य तंत्र का निर्माण किया जाता था जिस मुखिया पर खेतिहर जमीन ज्यादा होती थी वह सबसे शक्तिशाली होता था
मुखियातंत्र :- तमिल क्षेत्रों में तीन प्रकार के मुखिया थे।
- कीलार (छोटे मुखिया)
- वेलीर ( बड़े मुखिया)
- बैडर (सबसे बड़े मुखिया)
कीलार (छोटे मुखिया) :- छोटे गांव के मुखिया होते थे जहां रक्त संबंध का आधिपत्य था कीलार मुखियाओं को वेलीर और बैडर के नीचे काम करना पड़ता था बड़े मुखिया तंत्रों के अभियानों में साथ जाना पड़ता था। बड़े मुखिया इन्हें इनाम के नाम पर पराजित गांव दे देते थे ।
वेलीर (बड़े मुखिया):- सूबेदार भी कहते हैं वेलीर पहाड़ी क्षेत्रों पर नियंत्रण रखते थे यह मुख्य शिकारी पर निर्भर होते थे पहाड़ी इलाकों में वेट्टुवर व और वेडर-कुखर प्रमुख कुल थे।
बैडर (सबसे बड़े मुखिया) :- इनका कीलार और वेलीर पर नियंत्रण होता था। यह इन दोनों से राजस्व वसूलते थे लेकिन कोई निश्चित भुगतान का प्रचलन नहीं था। बड़े मुखियातंत्रों की श्रेणी में चोर चोर और पांड्य प्रमुख राजघराने थे राज्य क्षेत्र का कोई निश्चित सीमा निर्धारण नहीं था।
लूट के माल का बंटवारा :- इस काल में लूटमार कर धन इकट्ठा किया जाता था बड़े सरदार छोटे सरदारों को अक्सर लूट लेते थे लूट के माल को सरदार सैनिक भाटो और चिकित्सकों को भी देता था। उपहार देना सरदारों का उत्तरदायित्व होता था। इस प्रकार लूटमार उस समय की राजनीतिक व्यवस्था का अंग बन चुकी थी सरदार ज्यादातर पशुधन और अनाज की लूटमार करते थे। भू -क्षेत्र को भी सरदार अपने नियंत्रण में कर लेते थे।
राजनीतिक नियंत्रण के विभिन्न स्तर :- प्रधान शासक समुदाय के रूप में सूबेदार का पूरे तमिल क्षेत्र पर अधिकार था। तमिल क्षेत्र में 15 वेलीर मुखिया तंत्र था। कई वेलीरो का व्यापारिक स्थल, बंदरगाह, पहाड़ी क्षेत्रों का नियंत्रण था। सूबेदार वैलेरो को नियंत्रण में करने के लिए विवाह संबंध स्थापित करते थे सैन्य कार्यवाही से भी अपने अधीन कर लेते थे।
विभिन्न स्तर :- परंपरागत हर रोज बड़े लोगों की एक सभा बुलाई जाती थी सभा की बैठक जहां होती थी उसे मनरम कहा जाता है यानी पेड़ के नीचे बनाया गया चबूतरा सरदार की सहायता के लिए अवै सभा होती थी।
राजनीतिक व्यवस्था में दो और निकाय थे :-
- ऐप्पेरूम कुजु (पांच बड़े समूह)
- ऐणापरोयम (आठ बड़े समूह)
इन निकायों की संरचना और कार्य का पता नहीं चल पाया है।
इस तरह देखा जाए तो तमिल राजनीतिक व्यवस्था मुखिया तंत्र पर आधारित होते थे सत्ता का आधार कुछ संबंध या रक्त संबंध से होता था सरदार आपस में लूटमार भी करते थे बड़े मुखिया सभी तमिल क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित कर रखा था प्रतिदिन के कार्य करने के लिए बैठकर होती थी
4) प्रारंभिक वैदिक राजतंत्र और धर्म पर एक निबंध लिखिए?
Write an essay on the early Vedic polity and religion?
2000-1000 B.C.E. भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक रूप से विभिन्न सभ्यता पाई जाती थी। यह सब सभ्यता कृषि आधारित हुआ करती थी क्योंकि इन सभ्यताओं में सिवाय हड़प्पा के कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं। वैदिक काल में राजतंत्र और धर्म के बारे में इस प्रकार चर्चा की गई है-
वैदिक काल में राजतंत्र--
वैदिक काल में राजतंत्र समान रूप से दिखाई नहीं पड़ता
ऋग्वेद में इसे दो भागों में विभाजित किया गया है
पहला राजन्य और दूसरा कबीले।
राजन्य उच्च स्तरीय लोग होते थे जो युद्ध के कार्य किया करते थे तथा सभ्यता के सदस्य छोटे छोटी परंपरा से संबंधित थे। लगातार कबीलों के संघर्षों के कारण समाज में विभाजन की स्थिति ने जन्म लिया।
कबीले के लोग युद्ध में विजय पाने के लिए बली दिया करते थे प्रारंभ में जन समुदाय इसमें समान रूप से भागीदारी निभाता था। प्रत्येक सदस्यों को बलि में बराबर हिस्सा दिया जाता था लेकिन युद्ध एवं संघर्षों में वृद्धि के कारण यज्ञ या बलि का महत्व बढ़ गया और पुरोहित ने समाज में एक विशिष्ट दर्जा हासिल कर लिया। काल के अंत उपहार का बड़ा हिस्सा पूरोहित पाने लगे। युद्ध के कारण राजा के पद का विशेष महत्व होने लगा और कुछ वंशीय परंपराओं के बीच विभाजन अधिक स्पष्ट हुआ।
सभा कबीले के कुछ चुने गए सदस्यों का परिषद हुआ करता था इसलिए इसे विशेष स्थान दिया गया
आरंभिक वैदिक काल में राजनीतिक तंत्र का ढांचा पूरी तरह विकसित नहीं था जिसके परिणामस्वरूप यह श्रेणीबद्ध रूप में नहीं दिखाई पड़ता है।
वैदिक काल में धर्म-
प्रकृतिवाद-
वैदिक लोगों के धार्मिक विचार ऋग्वेद के श्लोक से स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं यह प्राकृतिक शक्तियों जिन पर में नियंत्रण नहीं कर सकते थे उन्हें देवी शक्ति मानते थे शक्तियों में अधिकतर पुरुष देवता हुआ करते थे देवियों की संख्या बहुत कम हुआ करती थी इस प्रकार देखा जा सकता है कि पित्रसत्तात्मक समाज को दर्शाता है।
प्रतीकात्मक-
देवी देवताओं को विभिन्न कार्यों का स्वरूप माना जाता था जैसे बारिश के लिए सभी लोग इंद्र देवता पर आश्रित हुआ करते थे वही इंद्र के बाद सबसे अधिक महत्व अग्निदेव का हुआ करता था
अग्नि देव के समक्ष विवाह, पूजा पाठ आदि कार्य किए जाते थे
वरुण को जल का देवता माना जाता था यह विश्व में प्राकृतिक व्यवस्था बनाने में रक्षक के रूप में भी देखे जाते थे मृत्यु का देवता यम को बनाया गया था अन्य दूसरे देवता सूर्य , रूद्र आदि भी हुआ करते थे
बली-
वैदिक धर्म में बलि भी दी जाती थी। देवताओं की उपासना करने ,पशुओं को प्राप्ति ,पुत्र प्राप्ति, युद्ध में विजय पाने तथा मनोरथ को पूरा करने के लिए बलि की अवधारणा प्रस्तुत की गई। छोटे अनुष्ठान घरेलू स्तर पर किए जाते थे परंतु कुछ समय बाद सामुदायिक बलिदान भी आयोजित किया जाता था। पशु किसी भी प्रकार से आर्थिक लाभ ना दें पाता हो उसे बलि मे दिया जाता था।
इस प्रकार वैदिक धर्म में पशुपालक समाज को उजागर करता है वही वैदिक काल में राजतंत्र संघर्ष पूर्वक भरा हुआ था जिसमें अधिकतर युद्ध ही दिखाई पड़ते हैं।
5) उत्तर वैदिक काल की अर्थव्यवस्था और समाज में हुए परिवर्तनों का विश्लेषण कीजिए?
Analyze the changes that took place in the economy and society of the later period?
या
उत्तर वैदिक अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या थी?
What were the main features of the later Vedic economy?
उत्तर वैदिक काल का समय 1000 B.C.E से 600 B.C.E. के मध्य का समय था यह युग वैदिक कबीले सप्त सिन्धव क्षेत्र में गंगा की ऊपरी घाटी तथा उसके आसपास के क्षेत्र में फैल गए थे। इस समय में अनेक परिवर्तन हुए जैसे आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक आदि
आज हम उत्तर वैदिक काल में पूरे अर्थव्यवस्था और समाज में परिवर्तनों को समझने का प्रयास करेंगे।
उत्तर वैदिक काल में अर्थव्यवस्था-
पशुपालन-
प्रारंभिक वैदिक समाज पशुपालन पर आधारित था पशुओं का पालन मुख्य पेशा हुआ करता था एक चरवाही समाज कृषि उत्पादकों की तुलना में पशु धन पर अधिक निर्भर हुआ करता था पशु चराने का काम आजीविका का मुख्य साधन था। पशु संपन्नता का प्रतीक हुआ करते थे जिस व्यक्ति के पास जितने अधिक पालतू पशु हुआ करते थे वह उतना ही संपन्न माना जाता था। पालतू पशु का स्वामी 'गोमत' के लाता था।
गाय - उत्तर वैदिक काल में गायों का महत्व अत्यधिक था। गोदान, विवाह में गाय दान देना यह सारी आम बात हुआ करती थी। गांव के धनी व्यक्तियों को मान कहा जाता था यह सारे शब्द गौर से बने हैं इससे पता लगता है कि उत्तर वैदिक काल में गायों का कितना अधिक महत्व था।
अश्व - अश्व को ना केवल राजाओ बल्कि देवी देवताओं से भी जोड़कर देखा जाता था। अश्व देवी देवताओं के रथ को खींचने के काम में लिए जाते थे यह आर्थिक संसाधन का भी कार्य किया करते थे।
अस्थाई जीवन-
अधिकतर लोग पशु पालक हुआ करते थे जिसके कारण वे खानाबदोश या अर्ध खानाबदोश की स्थिति में कार्य किया करते थे कृषि आधारित स्थाई व्यवस्था ना होने के कारण लोक एक ही स्थान पर टिककर नहीं रहते थे।
उत्तर वैदिक काल में सामाजिक परिवर्तन-
जाति व्यवस्था की अनुपस्थिति-
उत्तर वैदिक काल में कबीलाई समाज हुआ करता था। जाति एवं पारिवारिक संबंधों पर आधारित हुआ करता था समाज जाति के आधार पर विभाजित नहीं था और विभिन्न मुखिया, कारीगर, पुरोहित आदि एक ही समुदाय के हिस्से हुआ करते थे कबीले के लिए जन शब्द का प्रयोग किया जाता था।
कबीले का मुखिया प्रमुख हुआ करता था यह युद्ध का नेता तथा कबीले का रक्षक था
कबीले का मुखिया इस पत्र पद के लिए पैतृक रूप से सक्षम नहीं था
उसका कौशल उसे बस्ती में इस पद तक पहुंचाया करता था।
पैतृक समाज-
समाज पितृसत्ता पर आधारित था
पुत्र की प्राप्ति के लिए लोगों की समान इच्छा हुआ करती थी
पुरुष को स्त्री से ज्यादा अधिक महत्व दिया जाता था।
महिलाओं की स्थिति
पुरुष के मुकाबले महिलाओं की स्थिति कमजोर थी परंतु वह शिक्षित हुआ करती थी वह सभाओं में भाग लेती थी महिलाओं को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार था वे देर से विवाह कर सकती थी इन सब के बावजूद भी महिलाओं को पिता, भाई ,पति पर सदैव निर्भर रहना पड़ता था शिक्षा का मौखिक रूप हुआ करता था परंतु कोई पारंपरिक लोकप्रियता नहीं थी।
दास प्रथा-
दासों को अन्य समाज से अलग रखा जाता था ऋग्वेद से पता चला है कि दास अनुष्ठान में भाग नहीं लिया करते थे।कुछ दास धन और पशुओं के स्वामी भी हुआ करते थे दासो की स्थिति निम्न हुआ करती थी परंतु कई स्थानों पर दासो ने अपनी स्थिति में सुधार भी किया।
समाज में आर्थिक समानता दिखाई पड़ती है इसके साथ ही समाज में परिवर्तन भी समय के साथ हुआ करते थे। उत्तर वैदिक काल में अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पशुपालन पर आधारित थी
समाज में कबीलाई लोगों की स्थिति अधिक मजबूत हुआ करती थी।
6) मौर्य के अधीन राजस्व प्रशासन की प्रकृति पर चर्चा कीजिए?
Discuss the nature of the revenue administration under the mauyas?
16 महाजनपद थे जिनका वर्णन हमें इतिहास में देखने को मिलता है
इनमे से मगध एक महत्वपूर्ण महाजनपद था
छठी शताब्दी बी.सी.ई. मगध का विकास प्रारंभ हो चुका था।
मौर्य साम्राज्य के अधीन राज्यस्व प्रशासन की प्रकृति इस प्रकार थी--
मौर्य साम्राज्य राजस्व प्रशासन -
कृषि से मिलने वाला कर/ राजस्व ( tax )
उत्तर भारत में अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि आधारित हुआ करती थी। स्वामित्व वाली भूमि के अलावा भी लोगों के पास निजी स्वामित्व वाली भूमि हुआ करती थी
निजी स्वामियों को अपना एक हिस्सा राज्य को कर के रूप में देना पड़ता था
सिंचाई की सुविधा कृषि उत्पादन कार्य से जुड़ी हुई थी।
व्यापार से मिलने वाला कर/ राजस्व ( tax )
मौर्य साम्राज्य में राजस्व का दूसरा बड़ा स्रोत व्यापार हुआ करता था जिसमें वस्त्र उद्योग सबसे अधिक हुआ करता था इसमें उत्पादन कर्मचारियों के विवरण और वेतन के बारे में स्पष्ट रूप से बताया जाता था कपड़े के निर्माण में महिला श्रमिकों की नियुक्ति की जाती थी।
शहरी कर-
कौटिल्य की अर्थशास्त्र में शहरी कर का विवरण दिया गया है जैसे आयात और निर्यात पर लगाए थे सामान की शुल्क का उल्लेख है।
विस्तृत व्यापार क्षेत्र-
मौर्य साम्राज्य का व्यापार क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हुआ करता था बड़ी संख्या में महलों की खुदाई से मौर्य साम्राज्य एक व्यापारिक केंद्र के रूप में सामने आया है खुदाई में पक्की मिट्टी की वस्तुओं ,तांबे और लोहे के काम करने वाले मनके बनाने वाले आदि के साक्ष्य देखे गए हैं।
आर्थिक गतिविधियों से अधिकतम राजस्व निकालने के लिए अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था पर राज्य के नियंत्रण से जोड़ दिया गया है।
मौर्य साम्राज्य के अधीन राजस्व प्रशासन मुख्य रूप से कृषि ,उद्योग ,शहरी कर एकत्रित किया जाता था।
7) हड़प्पा सभ्यता के लोगों के समाज और धर्म के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कीजिए?
Discuss the various aspects of the society and religion of the Harappan people?
हड़प्पा सभ्यता का नाम विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में आता है यह भारत की महान सभ्यता है
हड़प्पा सभ्यता नगरीय सभ्यता है इसका भौगोलिक विस्तार बहुत अधिक था
इस बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैली सभ्यता धर्म और सामाजिक प्रणाली के बारे में जानने का प्रयास करते हैं किस प्रकार समाज में वेशभूषा, खानपान हुआ करता था तथा हड़प्पा सभ्यता में लोग किस धर्म और रीति रिवाज का पालन किया करते थे
यह जानना अत्यधिक उत्सुकता से भरा हुआ है।
हड़प्पा सभ्यता का समाज-
हड़प्पा से प्राप्त पुरातात्विक स्रोतों के माध्यम से इस काल की सामाजिक कल्पना की जा सकती है। यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हड़प्पा का समाज कैसा रहा होगा
वेशभूषा
हड़प्पा की वेशभूषा के बारे में मिले कंकालों से जानकारी प्राप्त होती है हड़प्पा की निवासी वर्तमान उत्तर भारत के निवासी जैसे दिखाई पड़ते थे उनकी रंग -रूप, लंबाई और चेहरा उत्तर भारत के निवासियों से काफी सामान दिखाई देते थे । पुरुषों के वस्त्र उनके शरीर का निचला भाग लपेटा रहता था तथा ऊपर एक सिरा बाएं कंधे से लेकर दाएं बाजू के नीचे पहुंच जाता था जिस प्रकार आज की साड़ी दिखाई पड़ती है एक दूसरी पोशाक घुटने तक थी
जो पुरुष और महिलाएं दोनों के द्वारा पहनी जाती थी
पुरुष माथे पर पट्टी बांधते थे और जूड़ा बनाया करते थे यह अंगूठियां ,कंगन और गले और हाथों में काफी गहने पहना करते थे
दाढ़ी को सामान्यतः बढ़ाया जाता था और मूछों को कटवा लेते थे
वहीं महिलाएं कमर में गहने पहना करती थी गले में हार, हाँथ में चूड़ियां और असंख्य गहने पहनती थी
पुरुष और महिला दोनों ही लंबे बाल रखा करते थे
सूती कपड़ों की लोकप्रियता अधिक थी।
खानपान
सिंध और पंजाब में हड़प्पा निवासी जौ और गेहूं खाया करते थे
गुजरात के रंगपुर और आदि स्थानों पर हड़प्पा निवासी द्वारा चावल और बाजरा खानपान पसंद किया जाता था
वहीं राजस्थान में रहने वाले निवासी केवल जौ से ही संतुष्ट हुआ करते थे
वे तेल और चर्बी , सरसों तेल अथवा घी से प्राप्त किया करते थे खानपान में मीठा बनाने के लिए शहद का प्रयोग किया जाता था केले ,अनार, नींबू, अंजीर, खरबूजा तथा आम फलों में प्रिय थे हड़प्पा निवासी मांसाहारी भोजन भी खाया करते थे बस्तियों से भेड़, भालू, हिरण, बकरियों की हड्डियां प्राप्त हुई है मछली दूध तथा दही का भी सेवन किया जाता था
भाषा एवं लिपि-
हड़प्पा की लिपि चित्रात्मक है जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका। इस के बारे में एक बात स्पष्ट है पूरी सभ्यता में हड़प्पा लिपि में कोई परिवर्तन नहीं हुआ इससे प्रमाणित होता है कि लिपि का प्रयोग केवल कुछ वर्ग विशेष किया करते थे।
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक पहलू -
हड़प्पा के लोगों की धार्मिक स्थिति के बारे में बहुत से प्रमाण मिले हैं।
पूजा स्थल-
मोहनजोदड़ो के किले बंद नगर तथा निचले नगर में कई बड़ी इमारतें मिली है जो मंदिर जैसी प्रतीत होती हैं मंदिरों में अधिकतर पत्थर की मूर्तियां हुआ करती थी मोहनजोदड़ो में कई ऐसे इमारतों के अवशेष मिले हैं जिन्हें देखकर यह पवित्र स्थल प्रतीत होते हैं इसमें हड़प्पा का विशाल स्नानागार सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इतिहासकारों का यह मानना है की स्नानागार किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए बनाया गया था।
आराध्य-
पूजनीय वस्तु के बारे में हड़प्पा की पक्की मिट्टी की मूर्तियों तथा मोहरों से जानकारी प्राप्त होती है
शिव= मोहरों से मिलने वाले प्रमाण से देवता की पहचान की जा सकती है यह शिव के रूप में प्रतीत होते हैं कई मोहरों में एक देवता जिनके सर पर भैंस के सींग का मुकुट है योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं उनके चारों और हाथी ,शेर, बकरी तथा मृत से गिरे हुए हैं
जॉन मार्शल ने इस देवता को पशुपति माना है कई स्थानों पर देवता के सिंह के बीच एक पौधा उठता दिखाई पड़ता है। कई हड़प्पा बस्तियों में शिव के लिंग रूप भी प्राप्त हुए हैं इन प्रमाणों के आधार पर इतिहासकारों ने हड़प्पा में शिव को प्रमुख देवता स्वीकार किया है।
मातृ देवी= हड़प्पा बस्तियों के अंदर पक्की मिट्टी की मूर्तियां मिली है जिसमें महिलाओं की भी मूर्तियां है जो बड़ी सी दिखाई पड़ती है वस्त्र तथा गले में हार पहने हुए यह देवी दिखाई पड़ती है कभी-कभी इन देवी के साथ इनका शिशु भी दिखाई पड़ता है इन संकेतों से प्रमाणित होता है कि हड़प्पा निवासी देवियों की भी आराधना किया करते थे।
वृक्ष आत्माएं=हड़प्पा सभ्यता के लोग वृक्षों की पूजा किया करते थे कई स्थानों पर वृक्ष की शाखाएं के बीच जाते हुए आकृति दिखाई दी है इतिहासकारों का मत है कि वर्तमान समय में भी पीपल के पेड़ की लोग पूजा करते हैं और सात आकृति, सात महान ऋषि को दर्शाती है उसी प्रकार हड़प्पा सभ्यता में भी यही प्रतिबिंबित हुआ है।
जानवरों की पूजा= कुछ मोहरों में बहुधा एक ब्राह्मणी बैल चिन्हित मिलता है जिसके गले के नीचे भारी झालरदार खाल लटकती दिखाई पड़ती है वर्तमान समय में भी गाय और बैलों के प्रति आदर दिखाई देता है।
मृतकों का अंतिम संस्कार-
हड़प्पा सभ्यता में मिस्र के पिरामिड की तरह वैभवशाली वस्तुएं प्राप्त नहीं हुई है हड़प्पा में कई कब्रें मिली है शव उत्तर दक्षिण दिशा में रखकर दफनाए जाते थे शवों को सीधा लिटाया जाता था कब्र में बड़ी संख्या में मिट्टी के बर्तन रख दिए जाते थे कुछ स्थानों पर शव को गहनों जैसे चूड़ियां ,हार, कान की बालियों के साथ दफनाया गया है कुछ कब्रों में तांबे के दर्पण भी प्राप्त हुए हैं कुछ कब्र पक्की ईंटों से बनाई गई है तथा कुछ ताबूत भी प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा के लोगों की अंतिम संस्कार की विधि भारत में बाद में आने वाले रीति-रिवाजों से भिन्न थी
भारत में दाह संस्कार किया जाता है।
निष्कर्ष -
हड़प्पा सभ्यता में विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार के रीति रिवाज प्रचलित थे। हड़प्पा सभ्यता की सामाजिक तथा धार्मिक पहलू में अनेक भिन्नता है यह वर्तमान समय से काफी भिन्न है समाज में वेशभूषा, खानपान ,रहन-सहन में काफी बदलाव दिखाई पड़ता है वही प्रमुख देवता शिव को माना गया है और अंतिम संस्कार की विधि में जमीन और आसमान का फर्क दिखाई पड़ता है।
8) हड़प्पा सभ्यता के उद्भव पर एक टिप्पणी लिखिए?
Write a note on the Evolution of the Harappa civilization?
यूरोपीय लोगों के द्वारा यह माना जाता था कि भारतीय उपमहाद्वीप में कोई भी सभ्य सभ्यता नहीं हुई है वे अपनी सभ्यताओं को महत्वपूर्ण माना करते थे परंतु हड़प्पा सभ्यता ने यूरोपीय लोगों की इस विचारधारा को तोड़ दिया हड़प्पा सभ्यता ना केवल भारतीय उपमहाद्वीप की बल्कि विश्व की सबसे पुरानी और सभ्य सभ्यताओं में है। पहले वैदिक सभ्यता को भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्राचीनतम सभ्यता माना जाता था परंतु हड़प्पा सभ्यता की खोज से यह भ्रम टूट गया। हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है।
हड़प्पा सभ्यता का उद्भव-
1826 -चार्ल्स मेसन पश्चिमी पंजाब यानी वर्तमान का हड़प्पा नामक गांव में गए वहां उन्होंने हड़प्पा सभ्यता के अवशेष देखें परंतु वे इसे सिकंदर सभ्यता कहने लगे।
1835- रेल की पटरी या बिछाई जाने के समय मजदूरों को कुछ पक्की ईटें जमीन से प्राप्त हुई यह ईंट बहुत अधिक मात्रा में थी इसे दिखाने के लिए पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अध्यक्ष अलेक्जेंडर कनिंघम के पास ले जाया गया परंतु अलेक्जेंडर कनिंघम ने इसे बौद्ध धर्म से संबंधित समझकर अधिक ध्यान नहीं दिया
कनिंघम के खोज का आधार चीनी यात्री हेग सांग की यात्रा वृतांत बने उन यात्रा वृतांत के अनुसार ही अलेक्जेंडर कनिंघम ने भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी सारी खोज को आगे बढ़ाया। परंतु इस बार वे एक महान सभ्यता की खोज से अपना हाथ पीछे खींच लिया।
1921- हड़प्पा सभ्यता की खोज दयाराम सहानी द्वारा जॉन मार्शल के नेतृत्व में की गई जॉन मार्शल पुरातात्विक विभाग के अध्यक्ष थे। सर्वप्रथम हड़प्पा में साक्ष्य प्राप्त होने के कारण इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया गया। हड़प्पा सभ्यता सिंधु घाटी के पास विकसित हुई इसी कारण इसे सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार 1921 में एक महान सभ्यता विश्व के सामने प्रस्तुत हो सकी। हड़प्पा सभ्यता एक बहुत बड़े भूभाग में फैली हुई थी।
1924- राखाल दास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो में भी हड़प्पा के साक्ष्य प्राप्त हुए।
हड़प्पा की खोज में प्रमुख स्थल पाकिस्तान ,अफ़गानिस्तान और पंजाब में प्राप्त हुए थे हड़प्पा सभ्यता की अपनी बहुत सारी विशेषताएं है जैसे नगर नियोजन, जल निकासी, सिक्के और मनके, आदि हड़प्पा सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है यह मेसोपोटामिया के समानांतर थी। भारत में पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा सभ्यता का पता लगाया गया।
9) हड़प्पा सभ्यता की भौगोलिक विस्तार पर चर्चा कीजिए?
Discuss the geographical spread of the Harappa civilization?
हड़प्पा सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यता है हड़प्पा सभ्यता की खोज 1921 में दयाराम साहनी द्वारा की गई इस सभ्यता का भौगोलिक विस्तार लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर हुआ करता था हड़प्पा सभ्यता उपमहाद्वीप के एक बड़े भूभाग में फैली हुई थी।
उत्तरी भौगोलिक विस्तार-
हड़प्पा सभ्यता उत्तर में मांड वर्तमान का जम्मू कश्मीर तक फैली हुई थी।
दक्षिण भौगोलिक विस्तार-
हड़प्पा सभ्यता दक्षिण में दायमाबाद ( महाराष्ट्र) तक फैली हुई थी।
पूर्व में भौगोलिक विस्तार-
हड़प्पा का पूर्व में भौगोलिक विस्तार आलमगीर ( उत्तर प्रदेश) तक रहा था।
पश्चिम में भौगोलिक विस्तार-
हड़प्पा सभ्यता का प्रमुख विस्तार पश्चिम क्षेत्र में ही रहा यह सूतगेडोर ( बलूचिस्तान) तक रहा।
पश्चिमी क्षेत्र में पाकिस्तान में स्थित हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख केंद्र रहे।
पंजाब और सिंध के क्षेत्र में सिंधु नदी की प्रधानता से हड़प्पा सभ्यता का विस्तार हुआ
इस क्षेत्र में पशुचारी तथा खानाबदोश जातियां रहा करती थी यह पशुचारी खानाबदोश जातियां अपने पशु के लिए चारे की खोज में ऊंचे स्थान से निचले स्थान पर आती-जाती रहा करती थी।
भारत और ईरान के सीमावर्ती क्षेत्र में ऊंचे नीचे पठार क्षेत्र स्थित है
जो लोगों की रहने के लिए एक अच्छा साधन का कार्य किया करते थे।
लोग कच्चे मकानों में अस्थाई रूप से रहा करते थे।
निष्कर्ष -
इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में में फ़ैली सभ्यता थी
हड़प्पा सभ्यता मुख्य रूप से पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, वर्तमान भारत के पंजाब क्षेत्र में फैली हुई थी।
हड़प्पा सभ्यता की पोषण का कार्य सिंधु नदी ने किया
शुष्क जलवायु होने के कारण जहां खेती नहीं हो पाती वहां लोग पशुपालन से अपना जीवन निर्वाह किया करते थे
नदी के पास वाले इलाकों में लोग खेती कर व्यवसाय को बढ़ाते थे
इस प्रकार देखा जा सकता है कि हड़प्पा का भौगोलिक विस्तार चारों दिशाओं में फैला हुआ था।
10) हड़प्पा सभ्यता के पतन के विभिन्न सिद्धांतों की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए?
Critically discuss the various theories of the decline of the Harappa civilization?
हड़प्पा सभ्यता का पतन आज भी विद्वानों के लिए एक बड़ा रहस्य बन चुका है जिसका कोई एक सटीक जवाब विद्वान आज तक नहीं जान सके हड़प्पा सभ्यता के पतन के केवल कुछ संभावना ही विद्वानों के पास रह गई है जो कुछ इस प्रकार है-
बाढ़ और भूकंप-
हड़प्पा सभ्यता के पतन का एक प्रमुख कारण बाढ़ को माना गया है मोहनजोदड़ो की खुदाई में मकानों और सड़कों पर बाढ़ के अत्यधिक पानी के साक्ष्य मिले हैं जो कीचड़ युक्त मिट्टी से भरे हुए हैं इस बाढ़ के आने से मकान पूरी तरह टूट गए टूटे गए भवनों पर ही दुबारा मकान और सड़कें बनाई गई जिसके साक्ष्य खुदाई में मिले हैं इस प्रकार तीन से चार बार पुनर्निर्माण कार्य किया गया। इसी प्रकार भूकंप के भी साक्ष्य मिले हैं मकानों के टूटे ने का कारण भूकंप को भी बताया जाता है।
सिंधु नदी का मार्ग बदलना
इतिहासकार लैमब्रिक ने इस पतन पर अपना स्पष्टीकरण दिया है उनके अनुसार सिंधु नदी ने मार्ग में परिवर्तन कर मोहनजोदड़ो का विनाश किया सिंधु नदी एक अस्थिर नदी तंत्र है जो अपना रास्ता बदलती रहती है सिंधु नदी मोहनजोदड़ो से लगभग 30 मील दूर चली गई जिसके कारण शहर में खाद्य पदार्थों की कमी हुई और वहां भुखमरी जैसे हालात पैदा होने लगे। मोहनजोदड़ो पूरी तरह वीरान हो चला नदी के पास निवास करने वाले लोग अकाल से मरने लगे।
सूखा पड़ना-
डी पी अग्रवाल और सूद ने हड़प्पा सभ्यता की के पतन का एक नया सिद्धांत शुष्कता मे वृद्धि के कारण सूखा पर जाने को बताया ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका मे किए गए अध्ययनों से पता चला है कि अधिक शुष्कता के कारण हड़प्पा जैसे अर्ध शुष्क क्षेत्र में भी नमी और जल की उपलब्धता में कमी आई और परिणाम स्वरूप इन सभ्यताओं का पतन हुआ कृषि उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और अर्थव्यवस्था पूरी तरह निचले स्तर पर आ गई पश्चिमी राजस्थान में अस्थिर नदी तंत्र की समस्या रही।
बर्बर आक्रमण-
इतिहासकार व्हीलर के अनुसार हड़प्पा सभ्यता में आर्यों के द्वारा बार-बार आक्रमण किया गया जिससे सभ्यता खत्म हो गई मोहनजोदड़ो में निवास के पास जनसंहार के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं सड़कों पर मानव कंकाल पाए गए हैं। परंतु हड़प्पा सभ्यता के पतन का समय 1800 B.C.E. माना गया है इसके विपरीत आर्य लगभग 1500 B.C.E. से पहले भारतीय उपमहाद्वीप में नहीं आए थे इसलिए इस जानकारी पर भरोसा करना सभी के लिए संभव ना हो सका।
हड़प्पा सभ्यता के पतन की मुख्य रूप से चार सिद्धांत इतिहासकारों द्वारा दिए गए हैं बाढ़ और भूकंप, नदी द्वारा रास्ता बदलना अधिक, शुष्कता होना तथा आर्यों का आक्रमण बताया गया है सभी इतिहासकारों ने अपने अपने मतों पर साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं परंतु किसी एक मत पर निष्कर्ष निकालना अभी तक संभव नहीं हो सका इसलिए हड़प्पा सभ्यता के पतन के केवल कुछ सिद्धांत ही पता चलते हैं इसकी कोई सटीक जानकारी इतिहासकारों के पास प्राप्त नहीं हुई है।
11) महाजनपद शब्द से आपका क्या तात्पर्य है छठी शताब्दी बी सी के 16 महाजनपदों का संक्षेप में वर्णन कीजिए?
What do you mean by the term Mahajanpadas? Describe the 16 Mahajanpadas of the 6th century B. C. E. in brief?
उत्तर वैदिक काल में लोहे की खोज के बाद आर्थिक राजनीतिक जीवन की प्रगति आसमान छूने लगी
पहले लोग कबीले में रहा करते थे उसके बाद लोग धीरे-धीरे जन में रहने लगे और जन से जनपद तथा विकसित होकर महाजनपदों का रूप लेने लगे।
छठी शताब्दी BC तक आते-आते 16 महाजनपदों का विकास हो जाता है।
16 महाजनपदों में से सबसे प्रमुख मगध को माना गया है।
16 महाजनपदों की विस्तारपूर्वक चर्चा कुछ इस प्रकार है-
जनपद का अर्थ- जनपद दो शब्दों से मिलकर बना है जन तथा पद
जन का अर्थ है – लोग / जनता
पद का अर्थ है – पैर
अर्थात जनपद ऐसा भूमि का टुकड़ा है जहाँ लोग आ कर बसे
जनपद वैदिक काल में छोटे – छोटे राज्य थे
जब उत्तर भारत में लोहे का विकास हुआ तो यह जनपद अधिक शक्तिशाली हो गए थे
महाजनपद का अर्थ- जब जनपद बहुत अधिक शक्तिशाली और विकसित हो जाते थे तो यह महाजनपद कहलाने लगे थे यह महाजनपद प्राचीन भारत में प्रमुख प्रशासनिक इकाई होते थे
मगध
मगध की राजधानी राजगृह थी मगध मुख्य रूप से दक्षिण बिहार के क्षेत्र में आता था
जो वर्तमान समय में पटना से लेकर गया तक विस्तृत है
यह 16 महाजनपदों में से सबसे अधिक शक्तिशाली रहा
मगध में अनेक नदियां होने के कारण कृषि और व्यापार उन्नत स्थिति में आ पहुंचा।
मगध से बड़े-बड़े वंश के नाम जुड़े हैं जैसे मौर्य वंश आदि।
अंग
अंग नामक महाजनपद की राजधानी चंपा थी। यह बिहार के भागलपुर क्षेत्र में स्थित है।
यह 16 महाजनपदों में से एक था
वज्जि संग
वज्जि की राजधानी वैशाली हुआ करती थी। यह आठ जनपदों को मिलाकर एक महाजनपद बनाया गया था। वर्तमान में यह उत्तर बिहार के तिरगुत क्षेत्र या मिथिला क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
विश्व में सर्वप्रथम गणतंत्र स्थापित वज्जि में माना जाता है।
काशी
काशी की राजधानी वाराणसी हुआ करती थी। काशी अपने मंदिरों और सौंदर्य के कारण बहुत प्रसिद्ध राजधानी हुआ करती थी।
कौशल
कौशल की राजधानी श्रावस्ती थी जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में स्थित है।
मल्ल
मल्ल की राजधानी कुशीनगर हुआ करती थी जो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के देवरिया क्षेत्र में स्थित है यह महाजनपद भी गणतांत्रिक हुआ करता था। गौतम बुद्ध को महापरिनिर्वाण की प्राप्ति कुशीनगर में ही प्राप्त हुई।
वत्स
वत्स की राजधानी कौशांबी थी जो वर्तमान समय के उत्तर प्रदेश प्रयागराज में स्थित है।
कुरु
कुरु की राजधानी इंद्रप्रस्थ हुआ करती थी जिसे वर्तमान भारत में दिल्ली के नाम से जाना जाता है यह क्षेत्र महाभारत काल से ही बड़ी चर्चा का विषय रहा है।
पांचाल
पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र हुआ करती थी।
सुरसेन
सुरसेन की राजधानी मथुरा हुआ करती थी जो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में स्थित है।
चेदी
चेदी की राजधानी शक्तिमती या सोत्यिवती हुआ करती थी जो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में स्थित है। यहां के एक राजा शिशुपाल महाभारत के युद्ध में प्रसिद्ध हुए।
अवंती
अवंती क्षेत्र की दो राजधानी हुआ करती थी उत्तरी क्षेत्र की राजधानी उज्जैन तथा दक्षिणी क्षेत्र की राजधानी महिष्मति हुआ करती थी जो वर्तमान समय में मध्य प्रदेश में स्थित है। मगध और काशी के समान ही अवंती शक्तिशाली महाजनपदों में गिना जाता था।
मत्स्य
मत्स्य की राजधानी विराटनगर हुआ करती थी जो वर्तमान समय में राजस्थान के जयपुर में स्थित है।
अस्मक
अस्मक की राजधानी पोतन या पोटली हुआ करती थी जो वर्तमान समय में आंध्र प्रदेश के क्षेत्र में स्थित है। यह एकमात्र ऐसा महाजनपद था जो दक्षिण भारत में स्थित था।
कम्बोज
कम्बोज की राजधानी राजपुर या हाटक थी जो वर्तमान समय में भारतीय सीमा से बाहर स्थित है यह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच का क्षेत्र है।
गांधार
गंधार की राजधानी तक्षशिला हुआ करती थी यह वर्तमान समय में भारतीय सीमा से बाहर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित है यह एक शक्तिशाली महाजनपद हुआ करता था। तक्षशिला शिक्षा के लिए विश्व प्रख्यात क्षेत्र हुआ करता था।
इस प्रकार छठी शताब्दी बी सी में 16 महाजनपदों ने अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया यह महाजनपद आर्थिक विकास में अन्य क्षेत्र को पिछड़ते हुए आगे निकल गए। तक्षशिला,काशी,मगध आदि महाजनपद बहुत अधिक प्रसिद्ध हुए।
12 ) बुद्ध की मुख्य शिक्षाओं पर चर्चा कीजिए?
Discuss the main teachings of the Buddha?
गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था उनका जन्म नेपाल में स्थित लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था
बुद्ध की वास्तविक जन्मतिथि पर इतिहासकारों में वाद विवाद है
उनका जीवन बड़ी ही ठाट पाठ से व्यतीत हो रहा था परंतु उनके मस्तिष्क में अशांति थी
वे इन जीवन के दुखों से मुक्ति पाना चाहते थे
इस मुक्ति को खोजते हुए वे 29 वर्ष की आयु में अपने घर पत्नी और बेटे का परित्याग कर मोक्ष के मार्ग पर चल पड़े उन्होंने सन्यासी की भांति 6 वर्ष व्यतीत किया
वाराणसी के पास सारनाथ में उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया
उनके पहला उपदेश को धर्मचक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है जल्दी उन्होंने अपने धर्म प्रवर्तन के प्रचार के लिए बहुत स्थान पर भ्रमण करना प्रारंभ कर दिया
बौद्ध धर्म की शिक्षाएं-
हिंसा न करना
झूठ न बोलना
मादक पदार्थ का सेवन प्रतिबंधित
चार आर्य सत्य
संसार दुखों से भरा हुआ है और सारे दुखों का कारण है अज्ञानता , इच्छा है
इच्छाओं का अंत मुक्ति का मार्ग है।
मुक्ति अष्टांगिक मार्ग द्वारा प्राप्त की जा सकती है
अष्टांगिक मार्ग
अष्टांगिक मार्ग में मुक्ति का मार्ग बताया गया है
सम्यक दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वाश रखना
सम्यक वचन : सदैव सच बोलना चाहिए
सम्यक कर्म: मनुष्य को सदैव उचित कार्य करना चाहिए
सम्यक जीविका : व्यक्ति को ईमानदारी से अर्जित साधनों द्वारा जीवन यापन करना चाहिए
सम्यक् स्मृति: यह शरीर ईश्वर है और सत्य का ध्यान करने से ही सांसारिक बुराइयों से छुटकारा पाया जा सकता है
सम्यक प्रयास: किसी को भी बुरे विचारों से छुटकारा पाने के लिए अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना होगा कोई भी मनुष्य मानसिक अभ्यास के द्वारा अपनी इच्छाओं और मोह माया को नष्ट कर सकता है
सम्यक समाधि: ध्यान द्वारा ही वास्तविक सत्य प्राप्त किया जा सकता है
सम्यक संकल्पना: मानव को विलासिता से छुटकारा दिलाकर मानवता को प्रेम और दूसरों को प्रसन्न रखना चाहिए।
बौद्ध साहित्य को तीन भागों में बांटा गया है
- सुत्त पिटक
- विनय पिटक
- अभिधम पिटक
निष्कर्ष -
गौतम बुद्ध ने कर्म का सिद्धांत पर अधिक बल दिया है
किसी व्यक्ति का जीवन और अगले जीवन की दशा उसके कर्मों पर ही निर्भर करती है।
ब्राह्मणवादी परंपरा में हो रहे बुराइयों से बचने के लिए लोगों ने एक बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म को अपनाया बौद्ध धर्म केवल कर्म दर्शन पर आधारित था इसमें किसी पूजा पाठ , बलि आदि वैदिक परंपरा नहीं थी वैदिक धर्म के अनुष्ठानों एवं यज्ञ के विपरीत बुद्ध ने व्यक्तिगत नैतिकता पर अधिक बल दिया
बुद्ध ने ईश्वर के अस्तित्व को ना नकारा और ना पूरी तरह स्वीकार किया
यह केवल व्यक्ति के कार्यों पर अधिक बल देते थे
बौद्ध मत ने आत्मा को भी स्वीकार नहीं किया
COMMENTS